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रविवार, 14 जनवरी 2024

काश

काश मुझे भी पीने की आदत होती,मैं कब का मुर्दा हो गया होता। छुटकारा मिलता आज के आतंकवाद से, किसी शमशान भूमि में सो गया होता। मेरा एतबार कौन करेगा, मैंने मुर्दों को जीते देखा है। वही मेरा एतबार करेगा जिसने पत्थर की मूरत को दूध पीते देखा है। जवानी की याद जब बुढ़ापे में आती है, तो लगता है मैं अब भी अभी जवान हूं। पर टूट जाता है सब्र मेरा, जब हाथ पर लाठी नजर आती है। मेरे साथी कहाँ के कहाँ पहुंच गए, मगर मैं आशाओं की माला पिरोहता रहा। सब झूम रहे थे मस्ती में, मैं आँशुओं से पलके भिगोता रहा, अब मैं कविता किस पर लिखूँ, दुनिया की कहानी बदल गई है। कौन सुनेगा मेरी कविता यहां, जवानी जो मेरी ढल गई है। आजकल के लोग कविता से ज्यादा सूरत में दिलचस्पी पूरी रखते हैं। होठों पर मुस्कान मगर बगल में छुरी रखते हैं।। लेखक: मेरे ताऊजी स्वर्गीय श्री हीरा बल्लभ उप्रेती

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

ये मेरे मैं होने का वजूद

ये मेरे मैं होने का वजूद


मैं (ये मेरे मै होने का वजूद)

ये मेरे मै होने का वजूद

यादें जहाँ है मैं उन यादों में हूँ

बाते जहाँ है मै उन बातो में हूँ


नीदें जहाँ है मै उन रातो में हूँ


ख्वाब जहाँ है मै उन ख्वाबो में हूँ


इरादे जहाँ है मै उन इरादों में हूँ


मंजिल जहाँ है मै उन रास्तो में हूँ


अँधेरे जहाँ है मै उन परछायीयो में हूँ


उजालें जहाँ है मै उन रोशनियों में हूँ


आसमान जहाँ है मै उन बादलो में हूँ


जमीन जहाँ है मै मिट्टी की कण कण में हूँ


बारिश जहाँ है मै बारिश की बूंदों में हूँ


चाँदनीं जहाँ है मै चाँद सितारों में हूँ


गम जहाँ है मै वहाँ आंशुओ की बूंदों में हूँ


खुशी जहाँ है मैं मुस्कुराते चेहरों पे हूँ


दिल जहाँ है मै उन धडकनों में हूँ


मुझे न ढूँढो कही मै आपके भीतर ही हूँ...

मंगलवार, 22 मई 2018

पिताजी

पिताजी पर बहुत कम कविताएं लिखी गई है । रचयिता को सलाम ।

देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं
हर साल सर के बाल कम हो जाते हैं...
बचे बालों में और भी चाँदी पाते  हैं..
चेहरे पे झुर्रियों की तादाद  बढ़ा जाते हैं...
रीसेंट पासपोर्ट साइज़ फोटो में,
कितना अलग नज़र आते हैं....
"अब कहाँ पहले जैसी बात" कहते जाते हैं...
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं.....!!

सुबह की सैर में चक्कर खा जाते हैं...
सारे मोहल्ले को पता है, पर हमसे छुपाते हैं...
दिन प्रतिदिन अपनी खुराक़ घटाते हैं...और,
तबियत ठीक होने की बात फ़ोन पे बताते हैं...
ढीली हो गयी पतलून को टाइट करवाते हैं....
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं.....!!

किसी के देहान्त की ख़बर सुन घबराते हैं...
और अपने परहेजों की संख्या बढ़ाते जाते हैं....
हमारे मोटापे पे हिदाय़तों के ढेर लगाते हैं...
'तंदुरुस्ती हज़ार नियामत' हर दफ़े बताते हैं...
"रोज़ की वर्जिश" के फ़ायदे गिनाते हैं...
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं....!!

हर साल बड़े शौक से बैंक जाते हैं....
अपने ज़िन्दा होने का सबूत दे कितना हर्षाते हैं....
ज़रा सी बढ़ी पेंशन पर फूले नहीं समाते हैं...
एक और नई  FIXED DEPOSIT करके आते हैं...
खुद़ के लिए नहीं हमारे लिए ही बचाते हैं....
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं.....!!

चीज़े रख के अब अक़्सर भूल जाते हैं....
उन्हें ढूँढने में सारा घर सर पे उठा लेते हैं.....
और माँ को पहले की ही तरह हड़काते रहते हैं....
पर उनसे अलग भी कभी रह नहीं पाते हैं....
एक ही किस्से को पता नहीं कितनी बार दोहराते हैं...
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं.....!!

चश़्मे से भी अब ठीक से नहीं देख पाते हैं...
ब्लड प्रेशर की दवा लेने में आनाकानी मचाते हैं....
एलोपैथी के साइड इफ़ेक्ट बताते रहते हैं....
योग और आयुर्वेद की ही रट लगाए रहते हैं....
अपने ऑपरेशन को और आगे टलवाते रहते हैं....
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं......!!

उड़द की दाल अब नहीं पचा पाते हैं...
लौकी, तुरई और धुली मूंग ही अधिकतर खाते हैं....
दांतों में अटके खाने को तीली से खुज़लाते हैं...
किन्तु डेंटिस्ट के पास जाने से घबराते हैं....
काम चल तो रहा है की ही धुन बजाते हैं....
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं....!!

हर त्यौहार पर हमारे आने की बाट जोहते रहते हैं...
अपने पुराने घर को नई दुल्हन सा चमक़ाते हैं...
हमारी पसंदीदा चीजों के ढेर लगाते हैं....
हर छोटी-बड़ी फ़रमाईश पूरी करने  के लिए,
फ़ौरन ही बाजार दौड़े दौड़े चले जाते हैं....
पोते-पोतियों से मिल कितने कितने आँसू टपकाते हैं....
देखते ही देखते पिताजी बूढ़े हो जाते हैं.....!!

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

नए साल की तुम्हें बधाई



आई रे आई फिर वो नयी सुबह आई, नए साल की तुम्हें बधाई-२
कोई तो बुलाओं मुझे बेला अरि ओ बेला नव वर्ष की शुभ “बेला” लो मैं आई

धीरे धीरे छटने लगा कोहरा सूरज की किरणों संग लो मैं आई
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

जीवन के वृक्ष में दुखो की टहनियों पर खुशियाँ फैल आई
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

पंछियों के पंख सी उड़ान लिए, हर्षोल्लास अरमान ले आई
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

पिछले वर्ष को मुड़कर देखा ऐसा लगा जैसे सारे पल अभी-२ तो गुजरे है
कुछ खट्टी मीठी यादों को, गम के काटों को पीछे छोड़ खुशियाँ ही खुशियाँ लाई 
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

आशाएँ, स्वप्न, संकल्प, शुभकामनाओं का संगीत लिये लो मैं आई
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

आशाओं के हर अंकुर को वृक्ष बनाने नव फल फूल खिलाने मैं आई
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

जितनी ऊँची होती है बुजुर्गों की दुआ, बीते वर्ष से मैं ले आई
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई

नव वर्ष के स्वागत में हजारो रंग आपकी जिंदगी में लायी 
नए साल की तुम्हें बधाई, नए साल की तुम्हें बधाई



मंगलवार, 26 मार्च 2013

"छुट्टी अपनी तो आज ही होली है" होली है . . .

आपको सपरिवार होली की रंग भरी शुभकामनायें . . .


होली के दिन ये क्या ठिठोली है

छुट्टी अपनी तो आज ही होली है

लाल गुलाल सी लागे तेरी चोली है

हरे-नीले-गुलाबी रंगों में रंगोली है

छुट्टी अपनी तो आज ही होली है

गीतों में रंग चढ़ा संगीत में भी होली है

सात रंगों से भरी मेरी हमजोली है

छुट्टी अपनी तो आज ही होली है

रंगों में सराबोर सारे जग में होली है

दिल में उमंग जुबाँ पे सतरंगी बोली है

छुट्टी अपनी तो आज ही होली है

लोगो में उमंग चेहरे रंगीन सबकी मस्त टोली है

सबकी बस प्यार भरी बोली है

छुट्टी अपनी तो आज ही होली है

चूम बुढ़िया को बूढ़ा यूँ बोला-

'आज होली है, आज होली है'।

होली है  होली है  होली  है  . . .

शनिवार, 10 नवंबर 2012

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं


‎"दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं"

झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. दीप मल्लिका दीपावली -समस्त मित्रों एवं परिवार जन के लिए सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."
"दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं"

झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. दीप मल्लिका दीपावली -समस्त मित्रों एवं परिवार जन  के लिए सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."

शनिवार, 15 सितंबर 2012

याद "अक्सर याद आती है..."


याद "अक्सर याद आती है ". . .

हिंदी दिवस के अवसर पर मैंने सोचा की कुछ मेरी ओर से भी योगदान रहे तो अच्छा लगेगा जो मुझसे हो सका वो मैंने कोशिश की है अभी में इस कोशिश में सफल हुआ की नहीं ये तो मुझे भी नहीं पता . . . मगर कुछ भी कहों आजकल अक्सर याद आती है मेरे यार की . . .

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

पल पल महकाती है खुशबू, हवा मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

चेहरे पे बिखेरता है चाँदनी, चाँद मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

दिखाती है सपने सुनहरे हर, रात मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

लालिमा लाती है चेहरे पर सूरज की, किरण मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

वो हरियाली टमाटर सी लाली याद दिलाती है, बचपना मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

हवा का झोंका गर्मी की तपन बारिश की हर बूँद याद दिलाता है, मौसम मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

सुनहरे हसीन चेहरे टमाटर सी, मुस्कान मेरे यार की

आजकल अक्सर याद आती है, मुझे मेरे यार की

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

मिलते रहेंगे


“ मिलते रहेंगे ...”

जिंदगी में जरुर मिलते रहेंगे,

आप कैसे है ?  पूछते रहेंगे ...

बात को बिगड़ने नहीं देंगे, 

अगर बिगड़ी तो सँभालते रहेंगे ...

अलविदा तो अब भी नहीं कहूँगा,

छोटे छोटे पल चुराकर मुस्कुराते रहेंगे,

छोटे छोटे बहाने बनाकर मिलते रहेंगे ...

मिलने की तमन्ना दिल में रखता हूँ, इसलिए अलविदा कभी नहीं कहेंगे ...



शनिवार, 31 दिसंबर 2011

आप सभी को मेरी तरफ से "नव वर्ष की शुभकानाएँ"

इस वर्ष तन्हाई ने मेरे दिल में दस्तक ना दी, चारों तरफ खुशियों का एक समा सा रहा है
बदौलत इसके मेरी कलम कुछ रुकसत सी हो गयी मुझसे,जैसे सारी तन्हाईयों को समेट लिया अपने आगोश में
मैंने कहा भूल गयी अपनी "बेला" को, वो आ रही है और तुम्हें बुला रही है
मैंने इतना कहा ही था की बस जैसे मानो तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ
तन्हाईयो का आलम मेरी कलम के मोती बनकर कुछ इस तरह बिखरा कलम. . .
"नव वर्ष आते रहे ढेर सारी खुशियों की सौगात लाते रहे,
आशा और निराशा से तो जीवन भरा पड़ा हुआ है, कुछ खुशियों के दीप हम भी जलाते रहें,
नव वर्ष कल्याणकारी हो, मंगलकारी हो, वर्ष भर हर्षोउल्लास बना रहे,
जिदगी का एक साल गुजर जाएगा, जिंदगी के बसंत में एक और बसंत हमेशा जुड़ता रहे, यही कामना रखतें है. . ."

आप सभी को मेरी तरफ से "नव वर्ष की शुभकानाएँ"
"नव वर्ष मंगल मय हो"

"नव वर्ष का जन्म दिन"

नव वर्ष मंगल मय हो, नव वर्ष की हार्दिक बधाईयां,
एक "जन्म दिन" ऐसा भी इस बार "नव वर्ष" का कुछ नए तरीके से आगमन करते है . . .

तुम तो आ ही गए, तुम्हें तो आना ही था "नव वर्ष"
नव वर्ष मानो कोई बच्चे ने जन्म लिया हो, उसे सहलाते रहे खिलखिलाते रहे
कभी बारिश की बूँद बनकर अपने रोने का एहसास दिलाता है,
तपती धुप से तेजस्वी होने का, तो कभी पतझड़ में भूख लगने का एहसास दिलाता है,
ठण्ड में तो मानो जैसे सारे दुःख दर्द समेटे हुए हो, कोहरा तो ऐसे जैसे जख्मो पे पट्टी बधी हो,
हर बदलते मौसम में अपने नए नए अंदाज दिखलाता है,
धरती माँ की बाहों में खेलता कूदता, पितृ समान आसमान की चादर ओढ़े, बादलों की छावं में रहता है,
ऋतुओ के संग, होली के रंग, दीपावली में दीपो संग, ईद के चाँद से, चांदनी रात से अन्य सभी त्योहारों से मन बहलाता रहता है,
प्रक्रति से तो ऐसे खेल खेलने लगा है मानो जैसे अपने क्रोध का एहसास दिला रहा हो,
हर पल, आठों पहर, और पुरे १२ महीने, जिंदगी के हर पहलु को भरपूर जीकर पुनर्जन्म लेता है,
प्रत्येक "नव वर्ष" के आगमन पर हम प्रफुल्लित हो जाते है हर्षोउल्लास से भर जातें है प्रत्येक दैनिक दिनचर्या के कारण तुम्ही हो,
तुम आ गए हो, तुम तो आ ही गए, तुम्हें तो आना ही था "नव वर्ष"

तभी तो हम हर बच्चे को ईश्वर का रूप मानते है, जो की स्वयँ सृष्टि के रचयिता है.
तो इस नव वर्ष हम भी खेलेंगे घुलेंगे मिलेंगे आपस में हम भी इसी प्रकार अपनी अभिलाषाओं को पूरा करेंगे.

मेरे समस्त मित्रवरो को "नव वर्ष" के "जन्म दिन" की हार्दिक बधाईयां नव वर्ष के आगमन की हार्दिक बधाईयां.

नव वर्ष मंगल मय हो . . .

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

बीतें लम्हें

वो देहरादून की छोटी छोटी बस्तिया, जहां रहती थी कुछ हम जैसी हस्तियाँ
उनमें से थी एक पटेलनगर की बस्ती, जहा छाई थी हर तरफ मस्ती,
वो चाहे हो चाय की दुकान, चाहें हो बोबी भैया का मकान,
चारो दिशाओं में थी बस एक ही चीज, और वो थी बस "मस्ती मस्ती मस्ती",
उनमें से चंद लम्हे मेरी कलम ढूड पायी . . .

कॉलेज की वो मस्ती, पटेलनगर की हर एक बस्ती,
वो छोटी छोटी सी बातें लम्बा बहाना, गर्मियों में अक्सर दो बार नहाना,
वो किताबें वो कॉपियाँ, एक रूपये में आती थी दो दो फोटोकापियां,
वो लड़ना झगड़ना, वो सब जूनियर्स पर अकड़ना,
वो टीचर्स को छेड़ना, वो दोस्तों की पिटाई,
वो गर्मियों की छुट्टियां, वो अल्मोड़ा की बाल मिठाई,
वो सीनियर्स की धुन पे हमारा नाचना,वो सोचना अगले साल हमे भी है नचाना
वो पांच रूल्स अब तो गए सारे भूल, मगर ना भूली क़यामत की रात
वो रात गयी वो बात गयी , नए साल का नया तराना
वो नए नए जूनियर्स ,जिनको था अब हमने नचाना,
वो मोर्निंग वो इवनिंग का तराना चला आ रहा था सदियों पुराना,
वो मेरे प्यारे मित्र आज बहुत याद आयें, ढेर सारे तराने खुशीयों के लायें,
वो छोटी छोटी बातों पे गुस्सा हो जाना,
वो १४ फरवरी को मेरा दोस्तों को मनाना, "याद आता है अक्सर मुझे",
वो पढाई से नजरे चुराना, वो रात रात भर दोस्तों को मिसकॉल मारना,
दिन गुजर गयें वो ना जाने कैसे , अब तो बाकीं है बस यादें ,
और सब बन गया गुजरा ज़माना ,चाहता हूँ " कॉलेज के दिन " तू फिर लौट आना,
बीतें हुए लम्हों को लौटा जाना . . .

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

11 11 11 एक एक एक एक चिड़ियाँ अनेक चिड़ियाँ

11 11 11

इस वर्ष का सबसे अदभुत दिन 11 11 11 . . . आओ इस दिन को एन्जॉय करें . . .

आज एक एक मिलकर अनेक हो गए मेरे प्यारे मित्रो चलो आज हम भी मिलकर एकजुट हो जाएँ . . .

बहुत पुराना एक गीत याद आ रहा है मुझे इस एक का नजारा देखकर "एक चिड़ियाँ अनेक चिड़ियाँ"

दूरदर्शन के सौजन्य से

तो फिर सुनो


                                    एक चिड़िया अनेक चिड़िया  
हम्म्म्म….

हिंद देश…. ह्म्म्म हम्म

हम सभी एक हैं….

ता रा रा रा रा…..

(भाषा अनेक हैं…. हम्म्म्म….)…2
ये अनेक क्या है दीदी ?

अनेक यानी बहुत सारे…

बहुत सारे…! क्या बहुत सारे..?

अच्छा बताती हूँ…

सूरज एक, चंदा एक, तारे अनेक…

तारों को अनेक भी कहते हैं…?

नहीं नहीं….!

देखो फिर से….
सूरज एक..

चंदा एक..

एक एक एक करके तारे भये अनेक….

ठीक से समझाओ ना दीदी….
देखो देखो एक गिलहरी..

पीछे पीछे अनेक गिलहरियाँ….

एक तितली.. एक और तितली….

एक एक एक करके हो गयी अब अनेक तितलियाँ….

समझ गया दीदी….

एक ऊँगली, अनेक उंगलियाँ….

दीदी दीदी, वो देखो अनेक चिड़ियाँ…..
अनेक चिड़ियों की कहानी सुनोगे..?

हाँ हाँ…..
आ आ आ….

एक चिड़िया,

एक एक करके अनेक चिड़ियाँ..

दाना चुगने आई चिड़ियाँ..\

दीदी हमें भी सुनाओ ना….

तो सुनो फिर से….
एक चिड़िया, अनेक चिड़ियाँ….

दाना चुगने बैठ गयी थी….

हाय राम..! पर वहां व्याध ने एक जाल बिछाया था..

व्याध..! व्याध कौन दीदी..?

व्याध, चिड़िया पकड़ने वाला..

फिर क्या हुआ दीदी….?

व्याध ने उन्हें पकड़ लिया ?

मार डाला….?
हिम्मत से गर जुटें रहें तो,

छोटे हों पर मिलें रहे तो..

बड़ा काम भी होवे भैया….2

एक, दो, तीन….
चतुर चिड़िया, सयानी चिड़िया,

मिलजुल कर, जाल ले कर भागी चिड़िया….

फुर्र्रर्र्रर……!!
दूर एक गाँव के पास चिड़ियों के दोस्त चूहे रहते थे,

और उन्होंने चिड़ियों का जाल काट दिया….
तो देखा फिर तुमने…..!

अनेक फिर एक हो जाते हैं,

तो कैसा मज़ा आता है….

दीदी.. मैं बताऊँ..?
हो गए एक,

बन गयी ताकत,

बन गयी हिम्मत,

दीदी.. अगर हम एक हो जाएं,

तो बड़ा काम कर सकते हैं..?

हाँ हाँ.. क्यूँ नहीं..!

तो इस पेड़ की आम भी तोड़ सकते हैं..?

हाँ तोड़ सकते हैं..

पर जुगत लगानी होगी..
अच्छा… ये जुगत…!

वाह..! बड़ा मज़ा आएगा….
हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं….4

रंग-रूप वेश-भाषा चाहे अनेक हैं….4

एक-अनेक, एक-अनेक…
सूरज एक, चंदा एक, तारे अनेक….

एक तितली, अनेक तितलियाँ..

एक गिलहरी, अनेक गिलहरियाँ….

एक चिड़िया, एक एक अनेक चिड़ियाँ….

बेला, गुलाब, जूही, चंपा, चमेली….4

फूल है अनेक किंतु माला फिर एक है….4

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

दीपावली की शुभकामनायें

दीपावली के शुभ आगमन पर मेरे समस्त मित्रवरो और ब्लोग्कर्ताओ एवं समस्त परिवारजनों को मेरी और से हार्दिक शुभकामनायें आपके जीवन में हर्षोउल्लास बना रहे ...


आपका अपना
योगेश चन्द्र उप्रेती



गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

क्रोध दुश्मनी का बीज . . .

आज मेरी कलम क्रोध के काफी समीप पहुच चुकी थी। मुझे आकर के बोली कि चलो आज इसका अंत समय आया आओ देखें की क्रोध के बीज ने कैसा खेल रचाया।

क्रोध

आज अरसे बाद कोई अपना मुझसे खफा खफा सा नजर आया,
क्रोध की बदौलत दुश्मनी का एक पौंधा सा उगता नजर आया,
समय की धारा से शायद मैंने ही कुछ ऐसे सीचा उसें,
खामोशी की छावं तले, दुश्मनी का फूल उगता नजर आया,
पौधें को दुश्मनी का वृक्ष बनता देख, कहीं दुश्मन बनता नजर आया,
एक तुच्छः से क्रोध के बीज से, दुश्मन सा भयंकर फल पनप आया,
क्रोध का बीज बोना जरुरी है क्या ? बारम्बार प्रश्न मन में उठता नजर आया,
दुश्मनी के वृक्ष में, अहंकार तो कही पे स्वार्थ की शाखाओं का संसार नजर आया,
इन फलो को पकने से पहले आज मेरी कलम ने इन्हें नेस्तोनाबुत करने का मन बनाया,
दुश्मनी के वृक्ष में विनम्र भाव एवं खुशी के प्रवाह से भरा हुआ तेज़ाब डालने को मन आया,
क्रोध के बीज को कभी ना बोयें, क्रोध के इस बीज का अब अंत समय आया।

मैंने सुना है कि क्रोध नहीं आता यह कहना काफी मुश्किल है। क्रोध का जन्म इच्छा के गर्भ से होता है और इच्छा सबके अंदर है। हमारी इच्छाएं पूरी नहीं होती तो हमें क्रोध आता है। इच्छा के रूपान्तरण की कला जो सीख जाता है शायद वह क्रोध से बच सकता है।

"क्रोध दूसरे से ज्यादा अपना खुद का नुकसान करता है। इसका अहसास हमें तब होता है जब हमारा क्रोध शांत हो जाता है।"

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष मंगल मय हो

नव वर्ष मंगल मय हो

आपको और आपके समस्त परिवार को

नए साल के आगमन पर हार्दिक बधाईयाँ 



Yogesh Chandra Upreti
Software Engineer
Alchemist Group, Chandigarh, India
Mobile No. +919646995242

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

ना जाने वो कब आएगी

 






  

ना जाने वो कब आएगी, 
साझ ढले सूरज तलें, या चाँद तारो तलें
सूरज की पहली किरण के संग, या नीलें अम्बर तलें
नदियों की लहरों संग, या मौसम के बदलते मिजाज के संग
कालें मेघो से बर्खा की तरह, पर्वतों से बर्फ की चादर ओड़े
हवाँ के झरोखों से, या कपकपाती  ठण्ड में धुंद्लें कोहरे के बीच
आसमान में बादलो से होकर,  या सुहावने मौसम के संग
मुझे इंतज़ार है उसका बेकरारी से, वो फिर मुझे अपनी ओर खीच रही है
एहसास दिलाते हुए की तू मुझसे मिल तो सही, मै ही तेरा भविष्यकाल हूँ
अभी मै तुम्हारा सपना हूँ, चंद लम्हात के बाद मै ही तुम्हारी हकीक़त हूँ
मेरा नाम है "बेला", आप सभी की अपनी "नव वर्ष की शुभ बेला"

नव वर्ष से पूर्व , नव वर्ष के इंतज़ार में
मेरा दिल  कहता है की वो कुछ ऐसे आएगी
आपके दिल की हर एक हसरत पूरी हो जायेगी
नव वर्ष की शुभ बेला नए तराने लेकर आएगी 

मै  आपकी अपनी "बेला" "नव वर्ष की शुभ बेला"
में जल्द आ रही हूँ . . .

लेखनी: योगेश चन्द्र उप्रेती

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

शायद ज़िन्दगी बदल रही है . . .

मेरे मित्र आदित्य गुप्ता जी जिंदगी को कुछ यूँ बयान कर रहे है शायद आपको पसंद आएं.

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...

जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है...

जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते
हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं...

जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है...

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "

जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो न की काटो...

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिंदी दिवस पर विशेष "हिंद देश के निवासी सभी जन एक है ! रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं !! "

आज मेरा जन्मदिन हैं. और आज ही हिंदी दिवस भी...
इस खुशी के पावन मौके पर में चुप ना रह सकूंगा..
केवल इतना ही कहूंगा...

क्यों आज हिंदी भाषा पूरब से पश्चिम की ओर बहने लगी है...
क्या वाकई हिंदी भाषा अंग्रेजी भाषा के भंवर में खीचें जा रही है...
क्या हमें भी मंथन करना होगा अपनी भाषा को बचाने के लियें...
क्यों आज हम ऐसे पश्चिमी माहौल में जी रहे है...
कही हम खुद ब खुद अपनी भाषा की नय्या तो नहीं डुबो रहे है...
क्यों ना आज हिंदी दिवस के मौके पर हम एक प्रण करें...
अपनी माँतृ भाषा को सजोयें और उसका गुणगान करें और हर किसी के सम्मुख उसको बयान करें...
मेरा मधुर मन है व्यथाओ का किन्तु आज मुझे मुस्कुरा के कहना ही होगा...
"हिंद देश के निवासी सभी जन एक है ! रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं ! "
"हिंद देश के निवासी सभी जन एक है !"
जय हिंद जय भारत 

लेखक:- योगेश चन्द्र उप्रेती

रविवार, 15 अगस्त 2010

स्वतन्त्रता दिवस (भारत)

|| आजादी के परवानो का सम्मान करो ||

सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाईयाँ ...

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दुस्तां हमारा
हम बुलबले है उसकी वो गुलसितां हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमां का
वो सन्तरी हमारा, वो पासबां हमारा
गोदी मे खेलती है, उसकी हजारो नदियाँ
गुलशन है उसके दम से, रश्क ए जिनां हमारा
मजहब नही सिखाता, आपस मे बैर रखना
हिन्दी है हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

गम की बरसात

एक कवि के आंसू बारिश की बूँदें बनकर के किस तरह बिखरती है मैंने इस कविता में देखा तो मुझसे रहा नहीं गया.
आखिरकार मेरी कलम मजबूर हो गयी और एक बार फिर से मेरी कलम के मोती बिखर पड़ें...

लेखक की कविता...

"कभी बारिश मे भीगते भीगते तुम यूही चले आओ"
जानती हूँ ये सिर्फ कविताओ कहानिओ मे होता हैं ,,
पर कभी बारिश मे भीगते भीगते तुम यूही चले आओ ,,

खूब भीगे से झेपे झेपे खड़े क्या अन्दर आ जाऊ ,,
ये कहके जवाब का बिना इंतज़ार किए अन्दर चले आओ ,,

नहीं यार बस निकलूगा दो मिनट मे हो रही हैं देर ,,
ये कहते कहते घंटो ढहर जाओ ,,

किसी छोटी सी बात पे ढेर सारा खिलखिला के ,,
मेरे घर मेरे गरीब खाने मे मोतियो के ढेर लगा जाओ ,,

निकल पड़े फिर कुछ येसी बात ,,
करने लगु जब मैं बीते सालो का हिसाब किताब ,,
तुम बहुत खूबसूरती से बातों को मोड के ,,
कुछ अपनी ही सुनाने लग जाओ ,,

कुछ खाते कुछ पीते कुछ बतियाते ,,
चलो ये चुपचाप खाकर खतम करो ,,
ऐसा कुछ कहके हक़ जमा जाओ ,,

जिस दिल को अब बहुत अच्छे से ,,
समझा लिया था ,,
तुम फिर से उस दिल मे तोड़फोड़ मचा जाओ ,,

और फिर जब मैं बांध लू ढेर सी उम्मीदे ,,
तुम फिर आदतन चप्पल पहन के ,,
बारिश मे भीगते भीगते चले जाओ ,,

मेरी कलम के मोती...

"अच्छा होता अगर लेखक के आंसुओ से, बारिश की बूँदें ना निकली होती...
आपकी कलम की स्याही इस कदर भीगी भीगी ना होती...
में भी मुसुकुराता आज, अगर मेरी पलके भी भीगी ना होती...
इन बारिश की बूंदों में कवि का गम तो देखो, कवि की कल्पना को देखो...
उसके पास ना होने का एह्साह तो देखो, मिलन की प्यास तो देखो...
यह दिल का दर्द है, यही प्रेम है, कवि के ज़ज्बातो की बरसात तो देखो..."

शनिवार, 3 जुलाई 2010

मनुष्य

परोपकार ही मान है, परोपकार ही सम्मान है
भक्ति की धारा है, प्रभु की सेवा है
अहा ! वही उदार है, परोपकार जो करें
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरें...

परोपकार कोई धर्म नहीं, यही धर्मो का धर्म है, यही कर्म है
परोपकार से ही रिद्धि है, परोपकार से ही सिद्धि है
अहा ! वही सदाचारी है, परोपकार जो करें
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरें...

परोपकार क्षमा है, परोपकार शत्रु का मित्र है
परोपकार शुभ कर्म है, परोपकार सज्जन्न्ता है
विराग ज्ञान ध्यान तप, विवेक धैर्य त्याग परोपकार ही है
अहा वही प्रेरणाश्रोत है, परोपकार जो करें
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लियें मरें...

हर मनुष्य उपकार करें, एक दूसरे पे परोपकार करें यही मेरे जीवन का मूल सिद्धांत है। यही मेरे जीवन का आदर्श है।
लेखनी- योगेश चन्द्र उप्रेती

परोपकार

"परोपकार का अर्थ है दुसरो की भलाई करना।"

ताने को बुनने की तरह, कलियों को चुनने की तरह, कुम्हार की माटी की तरह आज सार्थक प्रयास कर रहा हूँ।
यूं लग रहा है में अपनी कलम से अपने आप पर ही परोपकार कर रहा हूँ।

मनमोहकता, वाणी की मधुरता, सत्यवचन, सत्कर्म की भावना मनुष्य के परोपकारी होने के आधार है। 
सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल, फल, फूल, इत्यादि, सभी प्रकृति के परोपकारी होने के आधार ही तो है।

सजीव एवं निर्जीव का एक दूसरे पे उपकार देखो, उदहारण तौर पर दैनिक जीवन की हर वस्तु का मनुष्य पे उपकार देखो।
वृक्ष तले छावं देखो, सूर्य का तेज़ प्रताप देखो वायु की वेगना देखो, प्रकृति का मनुष्य पे उपकार देखो, ईश्वर का श्रृष्टि पे परोपकार देखो।

भौतिक वातावरण का प्रत्येक पदार्थ ही नहीं अपितु सभी जीव, जंतु, पशु, पक्षी का मनुष्य पे परोपकार देखो।
मनुष्य का निःस्वार्थ स्वभाव देखो, प्रेमभाव सुख दुःख में आपसी मेलमिलाप देखो।
सभी दिशा वर्ग में केवल एक ही वक्तव्य दिखेगा यही है "परोपकार"


ना जाने क्यों आज मानवता दानवता में विलीन हो गयी,कुंठित क्यों है मन मानव का दृष्टि क्यों इतनी कुलीन हो गयी।
एक कहावत है जब आँख खुलें तभी सवेरा, आज ही प्रण करें  मन में परोपकार की भावना रखें, परोपकार से ही जीवन सफल है।

"परोपकार ही सफलता की कुंजी है"
लेखनी-योगेश चन्द्र उप्रेती       सत्यमेव जयतें !

सोमवार, 28 जून 2010

एक नज़र इधर भी...

भारत के लोगो बोलो यह आज कैसी घड़ी है, चले गए अंग्रेज मगर अंग्रेजी यही खड़ी है...
सिसकती सी हिंदी

जिनकी यह भाषा वही इसको भूले ,
कि हिंदी यहाँ बेअसर हो रही है ।
हिंदी दिवस पर ही हिंदी की पूजा ,
इसे देख हिंदी बहुत रो रही है।
हर एक देश की भाषा है अपनी ,
उसे देशवासी है सर पर बिठाते ,
मगर कैसी निरपेक्षता अपने घर में ,
हम अपनी ज़ुबा को स्वयं भूल जाते।
मिला सिर्फ एक दिन ही पूरे बरस में ,
यह हिंदी की क्या दुर्दशा हो रही है ।
कि जिसके लिए खून इतने बहाए,
जवानों ने अपने गले भी कटवाए ,
कि जिसके लिए सरज़मी लाल कर दी ,
जवानी भी पुरखो ने पामाल कर दी ।
तड़पते थे कहने को हम जिसको अपनी ,
वही हिंदी भाषा कहाँ खो रही है।
यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,
यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।
यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,
यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।
जय हिंद जय भारत


लेखक :- अज्ञात

बुधवार, 9 जून 2010

ॐ जय गूगल

ॐ जय गूगल हरे ......
स्वामी जय गूगल हरे .....

प्रोग्रामर्स के संकट,
देवेलोपेर्स के संकट, क्लिक मैं दूर करे!!

ॐ जय गूगल हरे ......!!

जो ध्यावे वो पावे , दुःख बिन से मन का,
स्वामी दुःख बिन से मन का,
होमेपेज की संपत्ति लावे,
होमेवर्क की संपत्ति करावे 
कष्ट मिटे वर्क का,

स्वामी ॐ जय गूगल हरे ...... !!

तुम पूर्ण सर्च इंजन 
तुम ही इन्टरनेट यामी,
स्वामी तुम ही इन्टरनेट यामी 
पार करो हमारी सेलरी,
पार करो हमारी अप्रैसल,
तुम दुनिया के स्वामी,

स्वामी ॐ जय गूगल हरे.

तुम इन्फोरमेसन के सागर, 
तुम पालन करता, स्वामी तुम पालन करता,
मैं मूरख खलकामी,
मैं सर्चर तुम सर्वर
तुम करता धरता !!

स्वामी ॐ जय गूगल हरे !!

दिन बंधू दुःख हरता,
तुम रक्षक मेरे,
स्वामी तुम ठाकुर मेरे,
अपनी सर्च दिखाओ,
सरे रिसर्च कराओ 
साईट पर खड़ा में तेरे,

स्वामी ॐ जय गूगल हरे !!

गूगल देवता की आरती जो कोई प्रोग्रामर गावे,
स्वामी जो कोई भी प्रोग्रामर गावे,
कहत सुन स्वामी, मस्त हरी  हर स्वामी,
मनवांछित फल पावे.

स्वामी ॐ जय गूगल  हरे !!

बोलो गूगल देवता की ------------- जय

शुक्रवार, 4 जून 2010

मैं लिखता हूँ

मैं लिखता हूँ इसलिए कि मुझे कुछ कहना होता है. मैं लिखता हूँ इसलिए कि ताकि मैं कुछ कहने के काबिल हो सकूँ.
मैं अफ़साना नहीं लिखता, हकीकत यह है कि अफ़साना मुझे लिखता है. अफ़साना मेरे दिमाग में नहीं, जेब में होता है जिसकी मुझे कोई ख़बर नहीं होती. मैं अपने दिमाग पर ज़ोर देता हूँ कि कोई अफ़साना निकल आए. मैं इसके कहने पर कलम या पैंसिल उठाता हूँ और लिखना शुरू कर देता हूँ- दिमाग बिल्कुल ख़ाली होता है लेकिन जेब भरी होती है, खुद-ब-खुद कोई अफसाना उछलकर बाहर आ जाता है...
आप की टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है। आप के विचार स्वंय मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित हो जाएँगे एवं आपकी बारंबारता भी दिखेगी। आप टिप्पणी नीचे बॉक्स में दे सकते है। मेरा अनुरोध प्रशंसक बनने के लिए भी है। आभार .....

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

जहाँ साथ रहे हों,जहाँ दोस्तों के मेले हों
हर सुबह संदील हो, हर शाम रंगीन हो
कुछ ऐसा ही था अपना यह स्पेशल घर
जहाँ गम की कोई ना बात हो,हमेशा खुशियों की सौगात हों
सोचता हूँ की एक ऐसा ही घर बनाऊं,अपने प्यारें दोस्तों को बुलाऊँ
फिर मिलकर झूमें गायें धूम मचाएं जस्न मनाएं...

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

"वक़्त"
हर खुशी है लोगो के दामन में, लेकिन एक हसी के लिए वक़्त नहीं,
माँ की लोरी का एहसास तो है, पर माँ को माँ कहने के लियें वक़्त नहीं,
सारे रिश्तो को तो हम मार चुकें, अब उन्हें दफनानें का भी वक़्त नहीं,
सारे नाम दिलो दिमाग में है, लेकिन दोस्ती के लिए वक़्त नहीं,
गैरो की क्या बात करें, जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं,
पैसे की दौड़ में ऐसे दौडें की थकने का भी वक़्त नहीं,
तू ही बता ऐ जिंदगी इस जिंदगी में क्यों किसी को वक़्त नहीं...

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...

दिल्ली की कहानी योगेश की जुबानी अगर दिल्ली के वाशिंदों को बुरा ना लगे ...
परन्तु मेरी एक छोटी सी कविता जो कही न कहीं थोड़ी ही सही मगर दिल्ली की कहानी बयान करती है...

हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी
एक ओर दौड़ती मोटर गाड़ी, दूजी ओर साइकिल रिक्शे की सवारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
जहा अमीर करते आराम की सवारी, वही भागते बच्चें बूढे गरीब नर नारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
कही भिकारी कही मदारी, खुले आम होती चोरीचारी
कही एक दूजे पे चड़ती सवारी, तो कही होती पॉकेट मारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
कोई नेता कोई अभिनेता तो कही पे छात्रनेता
करतें बीच सड़क हाहाकारी, आन्दोलन करतें आंदोलनकारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...

लिखिए अपनी भाषा में