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रविवार, 14 जनवरी 2024

काश

काश मुझे भी पीने की आदत होती,मैं कब का मुर्दा हो गया होता। छुटकारा मिलता आज के आतंकवाद से, किसी शमशान भूमि में सो गया होता। मेरा एतबार कौन करेगा, मैंने मुर्दों को जीते देखा है। वही मेरा एतबार करेगा जिसने पत्थर की मूरत को दूध पीते देखा है। जवानी की याद जब बुढ़ापे में आती है, तो लगता है मैं अब भी अभी जवान हूं। पर टूट जाता है सब्र मेरा, जब हाथ पर लाठी नजर आती है। मेरे साथी कहाँ के कहाँ पहुंच गए, मगर मैं आशाओं की माला पिरोहता रहा। सब झूम रहे थे मस्ती में, मैं आँशुओं से पलके भिगोता रहा, अब मैं कविता किस पर लिखूँ, दुनिया की कहानी बदल गई है। कौन सुनेगा मेरी कविता यहां, जवानी जो मेरी ढल गई है। आजकल के लोग कविता से ज्यादा सूरत में दिलचस्पी पूरी रखते हैं। होठों पर मुस्कान मगर बगल में छुरी रखते हैं।। लेखक: मेरे ताऊजी स्वर्गीय श्री हीरा बल्लभ उप्रेती

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