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सोमवार, 28 जून 2010

एक नज़र इधर भी...

भारत के लोगो बोलो यह आज कैसी घड़ी है, चले गए अंग्रेज मगर अंग्रेजी यही खड़ी है...
सिसकती सी हिंदी

जिनकी यह भाषा वही इसको भूले ,
कि हिंदी यहाँ बेअसर हो रही है ।
हिंदी दिवस पर ही हिंदी की पूजा ,
इसे देख हिंदी बहुत रो रही है।
हर एक देश की भाषा है अपनी ,
उसे देशवासी है सर पर बिठाते ,
मगर कैसी निरपेक्षता अपने घर में ,
हम अपनी ज़ुबा को स्वयं भूल जाते।
मिला सिर्फ एक दिन ही पूरे बरस में ,
यह हिंदी की क्या दुर्दशा हो रही है ।
कि जिसके लिए खून इतने बहाए,
जवानों ने अपने गले भी कटवाए ,
कि जिसके लिए सरज़मी लाल कर दी ,
जवानी भी पुरखो ने पामाल कर दी ।
तड़पते थे कहने को हम जिसको अपनी ,
वही हिंदी भाषा कहाँ खो रही है।
यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,
यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।
यही देख हिंदी दुखी हो रही है ,
यह भारत कि जनता कहाँ सो रही है।
जय हिंद जय भारत


लेखक :- अज्ञात

बुधवार, 9 जून 2010

ॐ जय गूगल

ॐ जय गूगल हरे ......
स्वामी जय गूगल हरे .....

प्रोग्रामर्स के संकट,
देवेलोपेर्स के संकट, क्लिक मैं दूर करे!!

ॐ जय गूगल हरे ......!!

जो ध्यावे वो पावे , दुःख बिन से मन का,
स्वामी दुःख बिन से मन का,
होमेपेज की संपत्ति लावे,
होमेवर्क की संपत्ति करावे 
कष्ट मिटे वर्क का,

स्वामी ॐ जय गूगल हरे ...... !!

तुम पूर्ण सर्च इंजन 
तुम ही इन्टरनेट यामी,
स्वामी तुम ही इन्टरनेट यामी 
पार करो हमारी सेलरी,
पार करो हमारी अप्रैसल,
तुम दुनिया के स्वामी,

स्वामी ॐ जय गूगल हरे.

तुम इन्फोरमेसन के सागर, 
तुम पालन करता, स्वामी तुम पालन करता,
मैं मूरख खलकामी,
मैं सर्चर तुम सर्वर
तुम करता धरता !!

स्वामी ॐ जय गूगल हरे !!

दिन बंधू दुःख हरता,
तुम रक्षक मेरे,
स्वामी तुम ठाकुर मेरे,
अपनी सर्च दिखाओ,
सरे रिसर्च कराओ 
साईट पर खड़ा में तेरे,

स्वामी ॐ जय गूगल हरे !!

गूगल देवता की आरती जो कोई प्रोग्रामर गावे,
स्वामी जो कोई भी प्रोग्रामर गावे,
कहत सुन स्वामी, मस्त हरी  हर स्वामी,
मनवांछित फल पावे.

स्वामी ॐ जय गूगल  हरे !!

बोलो गूगल देवता की ------------- जय

शुक्रवार, 4 जून 2010

मैं लिखता हूँ

मैं लिखता हूँ इसलिए कि मुझे कुछ कहना होता है. मैं लिखता हूँ इसलिए कि ताकि मैं कुछ कहने के काबिल हो सकूँ.
मैं अफ़साना नहीं लिखता, हकीकत यह है कि अफ़साना मुझे लिखता है. अफ़साना मेरे दिमाग में नहीं, जेब में होता है जिसकी मुझे कोई ख़बर नहीं होती. मैं अपने दिमाग पर ज़ोर देता हूँ कि कोई अफ़साना निकल आए. मैं इसके कहने पर कलम या पैंसिल उठाता हूँ और लिखना शुरू कर देता हूँ- दिमाग बिल्कुल ख़ाली होता है लेकिन जेब भरी होती है, खुद-ब-खुद कोई अफसाना उछलकर बाहर आ जाता है...
आप की टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है। आप के विचार स्वंय मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित हो जाएँगे एवं आपकी बारंबारता भी दिखेगी। आप टिप्पणी नीचे बॉक्स में दे सकते है। मेरा अनुरोध प्रशंसक बनने के लिए भी है। आभार .....

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