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शनिवार, 3 अप्रैल 2010

"वक़्त"
हर खुशी है लोगो के दामन में, लेकिन एक हसी के लिए वक़्त नहीं,
माँ की लोरी का एहसास तो है, पर माँ को माँ कहने के लियें वक़्त नहीं,
सारे रिश्तो को तो हम मार चुकें, अब उन्हें दफनानें का भी वक़्त नहीं,
सारे नाम दिलो दिमाग में है, लेकिन दोस्ती के लिए वक़्त नहीं,
गैरो की क्या बात करें, जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं,
पैसे की दौड़ में ऐसे दौडें की थकने का भी वक़्त नहीं,
तू ही बता ऐ जिंदगी इस जिंदगी में क्यों किसी को वक़्त नहीं...

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह...एक और अच्छी कृति....पैसे की इस अंधी दौड़ में हर कोई भाग रहा है लेकिन ये सोचने के लिए समय किसी के पास नहीं कि किसने क्या खोया और क्या पाया....

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