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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

बीतें लम्हें

वो देहरादून की छोटी छोटी बस्तिया, जहां रहती थी कुछ हम जैसी हस्तियाँ
उनमें से थी एक पटेलनगर की बस्ती, जहा छाई थी हर तरफ मस्ती,
वो चाहे हो चाय की दुकान, चाहें हो बोबी भैया का मकान,
चारो दिशाओं में थी बस एक ही चीज, और वो थी बस "मस्ती मस्ती मस्ती",
उनमें से चंद लम्हे मेरी कलम ढूड पायी . . .

कॉलेज की वो मस्ती, पटेलनगर की हर एक बस्ती,
वो छोटी छोटी सी बातें लम्बा बहाना, गर्मियों में अक्सर दो बार नहाना,
वो किताबें वो कॉपियाँ, एक रूपये में आती थी दो दो फोटोकापियां,
वो लड़ना झगड़ना, वो सब जूनियर्स पर अकड़ना,
वो टीचर्स को छेड़ना, वो दोस्तों की पिटाई,
वो गर्मियों की छुट्टियां, वो अल्मोड़ा की बाल मिठाई,
वो सीनियर्स की धुन पे हमारा नाचना,वो सोचना अगले साल हमे भी है नचाना
वो पांच रूल्स अब तो गए सारे भूल, मगर ना भूली क़यामत की रात
वो रात गयी वो बात गयी , नए साल का नया तराना
वो नए नए जूनियर्स ,जिनको था अब हमने नचाना,
वो मोर्निंग वो इवनिंग का तराना चला आ रहा था सदियों पुराना,
वो मेरे प्यारे मित्र आज बहुत याद आयें, ढेर सारे तराने खुशीयों के लायें,
वो छोटी छोटी बातों पे गुस्सा हो जाना,
वो १४ फरवरी को मेरा दोस्तों को मनाना, "याद आता है अक्सर मुझे",
वो पढाई से नजरे चुराना, वो रात रात भर दोस्तों को मिसकॉल मारना,
दिन गुजर गयें वो ना जाने कैसे , अब तो बाकीं है बस यादें ,
और सब बन गया गुजरा ज़माना ,चाहता हूँ " कॉलेज के दिन " तू फिर लौट आना,
बीतें हुए लम्हों को लौटा जाना . . .

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