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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव वर्ष मंगल मय हो

नव वर्ष मंगल मय हो

आपको और आपके समस्त परिवार को

नए साल के आगमन पर हार्दिक बधाईयाँ 



Yogesh Chandra Upreti
Software Engineer
Alchemist Group, Chandigarh, India
Mobile No. +919646995242

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

ना जाने वो कब आएगी

 






  

ना जाने वो कब आएगी, 
साझ ढले सूरज तलें, या चाँद तारो तलें
सूरज की पहली किरण के संग, या नीलें अम्बर तलें
नदियों की लहरों संग, या मौसम के बदलते मिजाज के संग
कालें मेघो से बर्खा की तरह, पर्वतों से बर्फ की चादर ओड़े
हवाँ के झरोखों से, या कपकपाती  ठण्ड में धुंद्लें कोहरे के बीच
आसमान में बादलो से होकर,  या सुहावने मौसम के संग
मुझे इंतज़ार है उसका बेकरारी से, वो फिर मुझे अपनी ओर खीच रही है
एहसास दिलाते हुए की तू मुझसे मिल तो सही, मै ही तेरा भविष्यकाल हूँ
अभी मै तुम्हारा सपना हूँ, चंद लम्हात के बाद मै ही तुम्हारी हकीक़त हूँ
मेरा नाम है "बेला", आप सभी की अपनी "नव वर्ष की शुभ बेला"

नव वर्ष से पूर्व , नव वर्ष के इंतज़ार में
मेरा दिल  कहता है की वो कुछ ऐसे आएगी
आपके दिल की हर एक हसरत पूरी हो जायेगी
नव वर्ष की शुभ बेला नए तराने लेकर आएगी 

मै  आपकी अपनी "बेला" "नव वर्ष की शुभ बेला"
में जल्द आ रही हूँ . . .

लेखनी: योगेश चन्द्र उप्रेती

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

शायद ज़िन्दगी बदल रही है . . .

मेरे मित्र आदित्य गुप्ता जी जिंदगी को कुछ यूँ बयान कर रहे है शायद आपको पसंद आएं.

जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...

जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है...

जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते
हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं...

जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है...

जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "

जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने मैं ही हैं.
अब बच गए इस पल मैं..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी मैं हम सिर्फ भाग रहे हैं..
इस जिंदगी को जियो न की काटो...

लिखिए अपनी भाषा में