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गुरुवार, 22 जुलाई 2010

गम की बरसात

एक कवि के आंसू बारिश की बूँदें बनकर के किस तरह बिखरती है मैंने इस कविता में देखा तो मुझसे रहा नहीं गया.
आखिरकार मेरी कलम मजबूर हो गयी और एक बार फिर से मेरी कलम के मोती बिखर पड़ें...

लेखक की कविता...

"कभी बारिश मे भीगते भीगते तुम यूही चले आओ"
जानती हूँ ये सिर्फ कविताओ कहानिओ मे होता हैं ,,
पर कभी बारिश मे भीगते भीगते तुम यूही चले आओ ,,

खूब भीगे से झेपे झेपे खड़े क्या अन्दर आ जाऊ ,,
ये कहके जवाब का बिना इंतज़ार किए अन्दर चले आओ ,,

नहीं यार बस निकलूगा दो मिनट मे हो रही हैं देर ,,
ये कहते कहते घंटो ढहर जाओ ,,

किसी छोटी सी बात पे ढेर सारा खिलखिला के ,,
मेरे घर मेरे गरीब खाने मे मोतियो के ढेर लगा जाओ ,,

निकल पड़े फिर कुछ येसी बात ,,
करने लगु जब मैं बीते सालो का हिसाब किताब ,,
तुम बहुत खूबसूरती से बातों को मोड के ,,
कुछ अपनी ही सुनाने लग जाओ ,,

कुछ खाते कुछ पीते कुछ बतियाते ,,
चलो ये चुपचाप खाकर खतम करो ,,
ऐसा कुछ कहके हक़ जमा जाओ ,,

जिस दिल को अब बहुत अच्छे से ,,
समझा लिया था ,,
तुम फिर से उस दिल मे तोड़फोड़ मचा जाओ ,,

और फिर जब मैं बांध लू ढेर सी उम्मीदे ,,
तुम फिर आदतन चप्पल पहन के ,,
बारिश मे भीगते भीगते चले जाओ ,,

मेरी कलम के मोती...

"अच्छा होता अगर लेखक के आंसुओ से, बारिश की बूँदें ना निकली होती...
आपकी कलम की स्याही इस कदर भीगी भीगी ना होती...
में भी मुसुकुराता आज, अगर मेरी पलके भी भीगी ना होती...
इन बारिश की बूंदों में कवि का गम तो देखो, कवि की कल्पना को देखो...
उसके पास ना होने का एह्साह तो देखो, मिलन की प्यास तो देखो...
यह दिल का दर्द है, यही प्रेम है, कवि के ज़ज्बातो की बरसात तो देखो..."

शनिवार, 3 जुलाई 2010

मनुष्य

परोपकार ही मान है, परोपकार ही सम्मान है
भक्ति की धारा है, प्रभु की सेवा है
अहा ! वही उदार है, परोपकार जो करें
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरें...

परोपकार कोई धर्म नहीं, यही धर्मो का धर्म है, यही कर्म है
परोपकार से ही रिद्धि है, परोपकार से ही सिद्धि है
अहा ! वही सदाचारी है, परोपकार जो करें
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरें...

परोपकार क्षमा है, परोपकार शत्रु का मित्र है
परोपकार शुभ कर्म है, परोपकार सज्जन्न्ता है
विराग ज्ञान ध्यान तप, विवेक धैर्य त्याग परोपकार ही है
अहा वही प्रेरणाश्रोत है, परोपकार जो करें
वही मनुष्य है जो मनुष्य के लियें मरें...

हर मनुष्य उपकार करें, एक दूसरे पे परोपकार करें यही मेरे जीवन का मूल सिद्धांत है। यही मेरे जीवन का आदर्श है।
लेखनी- योगेश चन्द्र उप्रेती

परोपकार

"परोपकार का अर्थ है दुसरो की भलाई करना।"

ताने को बुनने की तरह, कलियों को चुनने की तरह, कुम्हार की माटी की तरह आज सार्थक प्रयास कर रहा हूँ।
यूं लग रहा है में अपनी कलम से अपने आप पर ही परोपकार कर रहा हूँ।

मनमोहकता, वाणी की मधुरता, सत्यवचन, सत्कर्म की भावना मनुष्य के परोपकारी होने के आधार है। 
सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल, फल, फूल, इत्यादि, सभी प्रकृति के परोपकारी होने के आधार ही तो है।

सजीव एवं निर्जीव का एक दूसरे पे उपकार देखो, उदहारण तौर पर दैनिक जीवन की हर वस्तु का मनुष्य पे उपकार देखो।
वृक्ष तले छावं देखो, सूर्य का तेज़ प्रताप देखो वायु की वेगना देखो, प्रकृति का मनुष्य पे उपकार देखो, ईश्वर का श्रृष्टि पे परोपकार देखो।

भौतिक वातावरण का प्रत्येक पदार्थ ही नहीं अपितु सभी जीव, जंतु, पशु, पक्षी का मनुष्य पे परोपकार देखो।
मनुष्य का निःस्वार्थ स्वभाव देखो, प्रेमभाव सुख दुःख में आपसी मेलमिलाप देखो।
सभी दिशा वर्ग में केवल एक ही वक्तव्य दिखेगा यही है "परोपकार"


ना जाने क्यों आज मानवता दानवता में विलीन हो गयी,कुंठित क्यों है मन मानव का दृष्टि क्यों इतनी कुलीन हो गयी।
एक कहावत है जब आँख खुलें तभी सवेरा, आज ही प्रण करें  मन में परोपकार की भावना रखें, परोपकार से ही जीवन सफल है।

"परोपकार ही सफलता की कुंजी है"
लेखनी-योगेश चन्द्र उप्रेती       सत्यमेव जयतें !

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