परन्तु मेरी एक छोटी सी कविता जो कही न कहीं थोड़ी ही सही मगर दिल्ली की कहानी बयान करती है...
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी
एक ओर दौड़ती मोटर गाड़ी, दूजी ओर साइकिल रिक्शे की सवारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
जहा अमीर करते आराम की सवारी, वही भागते बच्चें बूढे गरीब नर नारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
कही भिकारी कही मदारी, खुले आम होती चोरीचारी
कही एक दूजे पे चड़ती सवारी, तो कही होती पॉकेट मारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
कोई नेता कोई अभिनेता तो कही पे छात्रनेता
करतें बीच सड़क हाहाकारी, आन्दोलन करतें आंदोलनकारी
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...
हाय रे हाय दिल्ली की भीड़ा भाड़ी...