ना जाने क्यों आज मानवता दानवता में विलीन हो गयी,कुंठित क्यों है मन मानव का दृष्टि क्यों इतनी कुलीन हो गयी।
शनिवार, 3 जुलाई 2010
परोपकार
"परोपकार का अर्थ है दुसरो की भलाई करना।"
ना जाने क्यों आज मानवता दानवता में विलीन हो गयी,कुंठित क्यों है मन मानव का दृष्टि क्यों इतनी कुलीन हो गयी।
"परोपकार ही सफलता की कुंजी है"
ताने को बुनने की तरह, कलियों को चुनने की तरह, कुम्हार की माटी की तरह आज सार्थक प्रयास कर रहा हूँ।
यूं लग रहा है में अपनी कलम से अपने आप पर ही परोपकार कर रहा हूँ।
मनमोहकता, वाणी की मधुरता, सत्यवचन, सत्कर्म की भावना मनुष्य के परोपकारी होने के आधार है।
सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल, फल, फूल, इत्यादि, सभी प्रकृति के परोपकारी होने के आधार ही तो है।
सजीव एवं निर्जीव का एक दूसरे पे उपकार देखो, उदहारण तौर पर दैनिक जीवन की हर वस्तु का मनुष्य पे उपकार देखो।
वृक्ष तले छावं देखो, सूर्य का तेज़ प्रताप देखो वायु की वेगना देखो, प्रकृति का मनुष्य पे उपकार देखो, ईश्वर का श्रृष्टि पे परोपकार देखो।
भौतिक वातावरण का प्रत्येक पदार्थ ही नहीं अपितु सभी जीव, जंतु, पशु, पक्षी का मनुष्य पे परोपकार देखो।
मनुष्य का निःस्वार्थ स्वभाव देखो, प्रेमभाव सुख दुःख में आपसी मेलमिलाप देखो।
सभी दिशा वर्ग में केवल एक ही वक्तव्य दिखेगा यही है "परोपकार"
ना जाने क्यों आज मानवता दानवता में विलीन हो गयी,कुंठित क्यों है मन मानव का दृष्टि क्यों इतनी कुलीन हो गयी।
एक कहावत है जब आँख खुलें तभी सवेरा, आज ही प्रण करें मन में परोपकार की भावना रखें, परोपकार से ही जीवन सफल है।
लेखनी-योगेश चन्द्र उप्रेती सत्यमेव जयतें !
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बहुत अच्छा लिखा है.. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ऐसी अच्छी अच्छी रचनाओं के लिए..अपना ऐसा ही अनवरत प्रयास जारी रखियेगा...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंvery nice thanks for this
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है ... आपकी टिप्पड़ियो के लिए बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंBahut achchha likha hai yogesh ji aapne..
जवाब देंहटाएंराहुल जी आपका बहुत बहुत आभार आप ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहियें उम्मीद करता हूँ की कुछ नयी रचनाओ से आपको जल्द जी रूबरू करवाऊं . . .
जवाब देंहटाएंLiked d poem 2 much.....d truth of life represented by u mr.yogesh ji,
जवाब देंहटाएंthanx alot n best wishes 4 this n best of luck 4 next poems.
राज पगड़िया जी मै आपके इस उत्साहवर्धक प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ. आपका यही प्रोत्साहन मेरे ह्रदय में बसे विनम्र स्वभाव को जगा देता है और मन में भाव स्वयं ही उत्पन्न होने लगते है. समय मिलते ही नयी रचनाओं को प्रकाशित करता हूँ.
जवाब देंहटाएंआपका अपना योगेश चन्द्र उप्रेती
NICE ONE
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद जी . . .
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
जवाब देंहटाएंnice and best used for children
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पर आकार अपनी उपस्थिति दर्ज करी इससे मेरी कविता लिखने की जो ललक है वो बढेगीं.
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसतोष जी क्या कहना चाह रहे है आप वैसे मैंने मेल में पढ़ लिया था आपका बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी कोई बात नहीं है बस कभी कभी दिल बहुत इच्छा करता है लिखने को तो में लिखने लगता हूँ . . .
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