हर सुबह संदील हो, हर शाम रंगीन हो
कुछ ऐसा ही था अपना यह स्पेशल घर
जहाँ गम की कोई ना बात हो,हमेशा खुशियों की सौगात हों
सोचता हूँ की एक ऐसा ही घर बनाऊं,अपने प्यारें दोस्तों को बुलाऊँ
फिर मिलकर झूमें गायें धूम मचाएं जस्न मनाएं...
हिन्दी साहित्य के श्रेष्ठतम राष्ट्रवादी गीत |
15 अस्त 197 |
अरुण यह मधुमय देश हमारा |
प्रयाण गीतः वीर तुम बढ़े चलो सोहन लाल द्विवेदी स्वरः निखिल कौशिक |
खूब लडी मरदानी वो तो झाँसी वाली रानी थी |
यह भारतवर्ष हमारा है, हमको प्राणों से प्यारा है |
चल मरदाने सीना ताने |
भारती वंदनाः भारती जय विजय करे |
जहाँ डाल डाल पर सोने की चिडिया करती हैं बसेरा |
हमको तो प्यारा लगता, अपना छोटा गाँव रे।।
चलो-चलो बाग़ों में खाएँ,जी भर के हम आम रे।।
काले भ्रमरों-सी जामुन भी, दीख रहीं डाली-डाली।
लाठी लेकर करता रहता, माली हरदम रखवाली।।
फिर भी बच्चे छुपकर तोड़ें, अमियाँ यहाँ तमाम रे।।
हल से जोतें खेतों को फिर, उस पर चले पटेला है।।
हमको बिठा पटेला ताऊ, मींड़ा करते ढेला है।।
दादा के संग दाँय चलाएँ, लेते रहें विराम रे।।
हरियाली के नीचे सुख से, निर्धनता भी सोई है।।
यहाँ प्रदूषण का ख़तरा भी हमको लगे न कोई है।।
बैठ आम के नीचे पढ़ते, आए न छनकर घाम रे।।
ठाकुर-बामन, नाई-तेली, हरिजन, जाटव, सक्का भी।
संकट के क्षण हो जाता है सारा गाँव इकठ्ठा भी।।
सभी धर्म मिल कर हैं रहते, झगड़े का क्या काम रे।।
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते
जब कोइ तागा टुट गया या खत्म हुआ
फिर से बांध के
और सिरा कोई जोड़ के उसमे
आगे बुनने लगते हो
तेरे इस ताने में लेकिन
इक भी गांठ गिराह बुन्तर की
देख नहीं सकता कोई
मैनें तो ईक बार बुना था एक ही रिश्ता
लेकिन उसकी सारी गिराहे
साफ नजर आती हैं मेरे यार जुलाहे
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
पक गया है शजर पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
फिर नजर में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई ।
हिंदी ब्लाग जगत की इस सरस दुनिया में आपका स्वागत है...हर तरह के दबाव से मुक्त यह स्वतंत्र पर्यावरण आपकी कलम और आपकी सोच को पूरा पूरा मौका देगा कि यह लगातार ऊंचे से ऊंचे उड़ सकें....अन्य ब्लागों और उनके कलमकारों के साथ आपके मित्रता पूर्ण संबंध इसे और बल प्रदान करेंगे....सो अधिक से अधिक ब्लागों के अध्यन को अपनी अन्य अच्छी आदतों में शामिल करें और पढ़ी हुयी रचनायों पर टिप्पणी करना न भूलें...
जवाब देंहटाएंयोगेश जी आपकी कलम के मोती वास्तव में आपकी लेखन साधना के आकाश पर चमक रहे सितारे भी हैं..
जय श्री कृष्ण ...आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं | हमारे ब्लॉग पर आपके विचारों का स्वागत हैं|
जवाब देंहटाएंsahi likh arahe ho
जवाब देंहटाएंmujhe bhi saari kavitayein mail karo
sahi hai bhai
जवाब देंहटाएंlikho aur hamain saari kavitayein bhi bhejo
मेरे मित्रो समय की कमी के कारण सबसे पहले तो में माफी चाहूँगा की में आपके इतने सुंदर टिप्पड़ियों को देखकर मेरा मन बहुत प्रफुल्लित हुआ है में आप सभी का तहे दिल से शुक्र गुजार करता हूँ.
जवाब देंहटाएंआपका यह योगदान मेरी छवी को कवि की भूमिका में बदलने के लियें अत्यधिक आवश्यक है. आपका बहुत बहुत धन्यवाद आप ऐसे ही प्रोत्साहन देते रहिएगा आपका सहयोग बहुत ही अनमोल है .....
आपका अपना योगेश चन्द्र उप्रेती
एकदमसही कहा है.अपना घर होता ही ऐसा है....उसपर भी अगर अपने पुराने दोस्तों के साथ अच्छे पल बिताने को मिले तो फिर कहना ही क्या.समय की रफ़्तार को हम थाम तो नहीं सकते लेकिन साथ गुजरे अच्छे पलों को यद् करके खुश जरूर हो सकते हैं...बहुत सटीक लिखा है...आशा है ऐसे ही अच्छी रचनाएँ आप अपनी कलम से कलान्वित करते रहेंगे....
जवाब देंहटाएंयोगेश जी आपका ब्लोग कुछ हट कर लगा ….... मैं भी गुलजार जी फैन हूँ उनकी शायरी बेमिसाल है
जवाब देंहटाएंआपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार धन्यवाद सुमन'मीत'जी...
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद आप ऐसे ही प्रोत्साहन देते रहिएगा...
Waah ❤️
जवाब देंहटाएंक्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ|
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